आज तुम भी चलो एक फैसला करो
जो न चले साथ कोई तो अकेले चला करो
हर एक का अपना अंदाज़ है जीने का
कौन कहता है की जीने के नाम पर मरा करो
इतना खुश नहीं था इबादतगाह में जितना मैकदे में रहा
सच बोलने से न वाईज डरा करो
क्या तू क्या मैं रहूँगा
मिटटी की जात को समजा करो
करवटें बदलना तकदीर की अदा है
नखासी तदबीर से तो कुछ किया करो
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