Saturday, December 26, 2009

koi shama koi parwaana ho gaya

ग़मों की देहलीज़, एक बदनाम पैमाना हो गया
किसी का नाम शमा किसी का परवाना हो गया

क्यूँ बेवजह मुस्कराते है लोग कि दिल रो रहा है
ये कैसे लोग क्या ज़माना हो गया

चोट देकर भी कहेंगे कि मोहब्बत करते है
किस हद तक किसी का आजमाना हो गया

बूत्खाने में सदा कहाँ से आती है
कितना पत्थर को पिग्लाना हो गया

माथे कि शिकन में कहानी ऊस हरजाई की
वो खुदा बन गया और मैं दीवाना हो गया

मुझे नाज़ है अपनी वफ़ा पर लेकिन
नखासी कहते है वफ़ा को गुज़रे ज़माना हो गया !

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